MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।

उत्तर -

धर्म क्या है?
(What is Religion )

मानव संसार अत्यधिक विस्तृत है। प्रकृति की प्रक्रियायें बड़ी जटिल हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक उसके सामने विचित्र प्रक्रियायें घटित होती हैं। प्रकृति के खेल मानव पूर्ण रूप से नहीं समझ पाता। आज विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है, फिर भी मानव मन में अनेक प्रश्नों का उत्तर नहीं मिल पाता। मानव क्यों मरता है? मरकर कहाँ जाता है? उसका क्या होता है? जीवन का क्या उद्देश्य है? आत्मा क्या है? सृष्टि की रचना कैसे हुई? इसी प्रकार के अनेक प्रश्न मानव मन में चक्कर लगाया करते हैं। आज भी मानव हारकर कह उठता है, "ईश्वर की लीला अपरम्पार है।" कल्पना कीजिये आज से हजारों वर्ष पूर्व के मानव की स्थिति, भयानक पशु, बिजली की कड़क, घनघोर वर्षा, आँधी-तूफान के बीच कुछ मानव जीवन के अस्तित्व के लिये संघर्ष करते होंगे। वह प्रकृति की इन प्रक्रियाओं पर कोई नियन्त्रण नहीं कर सकता था ( आज भी बहुत कुछ वैसी ही स्थिति है — भूचाल में नगर के नगर ध्वस्त हो जाते हैं और वैज्ञानिक लाचार देखता रहता है)। इसी प्रकार जीवन के अन्य क्षेत्रों में मानव अपने को असहाय पाता था और इन घटनाओं का कारण वह समाज में नहीं ढूंढ पाता था। स्वाभाविक ही था कि वह किसी अज्ञात या अलौकिक शक्ति में विश्वास करता। अलौकिक शक्ति में विश्वास करना ही धर्म है। वस्तुतः धर्म किसी न किसी प्रकार की अति- मानवीय या अलौकिक या समाजोपरि शक्ति पर विश्वास है, जिसका आधार भय, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता की धारणा है और जिसकी अभिव्यक्ति प्रार्थना, पूजा या आराधना है।

वस्तुतः धर्म का आधार किसी शक्ति पर विश्वास है और यह शक्ति मानव शक्ति से अवश्य श्रेष्ठ है। परन्तु केवल विश्वास से ही धर्म सम्पूर्ण नहीं है। इस विश्वास का एक भावनात्मक आधार भी होता है, जैसे उस शक्ति के सम्बन्ध में भय या उसके दण्ड का भय। साथ ही, उस शक्ति के प्रति श्रद्धा, भक्ति या प्रेमभाव भी धर्म का आवश्यक अंग है। उस शक्ति से लाभ उठाने के लिये उसके कोप से बचने के लिये प्रार्थना, पूजा या आराधना करने की विधियाँ या संस्कार भी हुआ करते हैं। इन धार्मिक क्रियाओं में अलग-अलग समाज में अलग-अलग तरह की धार्मिक सामग्रियों, धार्मिक प्रतीकों और जादू-टोने, पौराणिक कथाओं आदि का समावेश होता है। उस शक्ति का, जिस पर विश्वास किया जाता है, रूप और स्वरूप भी प्रत्येक समाज में अलग-अलग होता है। कहीं तो निराकार शक्ति की आराधना की जाती है और कहीं उस शक्ति का साकार रूप (मूर्ति) पूजा जाता है। संक्षेप में, इस अलौकिक शक्ति से सम्बन्धित समस्त विश्वासों, भावनाओं और क्रियाओं के सम्मिलित रूप को धर्म कहते हैं।

 

धर्म की परिभाषायें

एडवर्ड टायलर - "धर्म आध्यात्मिक शक्ति पर विश्वास है।"

सर जेम्स फ्रेजर - " धर्म से मैं मनुष्य से श्रेष्ठ उन शक्तियों की संतुष्टि या आराधना समझता हूँ जिनके सम्बन्ध में यह विश्वास किया जाता है कि वे प्रकृति और मानव-जीवन को मार्ग दिखलातीं और नियन्त्रित करती हैं। "

हानिगशीम (Honigsheim ) – "प्रत्येक मनोवृत्ति, जो कि इस विश्वास पर आधारित या इस विश्वास से सम्बन्धित है कि अलौकिक शक्तियों का अस्तित्व है और उनसे सम्बन्ध स्थापित करना सम्भव व महत्वपूर्ण है, धर्म कहलाती है।"

मैलिनोवस्की - " धर्म क्रिया का एक तरीका है और साथ ही विश्वासों की एक व्यवस्था भी और धर्म एक समाजशास्त्रीय घटना के साथ-साथ एक व्यक्तिगत अनुभव भी है। " मैलिनोवस्की के इस कथन से धर्म के विषय में चार बातें माननीय हैं। प्रथम, यह कि धर्म विश्वासों की एक व्यवस्था है। यह विश्वास किसी अलौकिक शक्ति, आत्मा, परमात्मा या और किसी पर हो सकता है। यह विश्वासों की एक व्यवस्था इस अर्थ में है कि उस अलौकिक शक्ति पर कुछ परम्परा- स्वीकृत तरीकों से विश्वास करते हैं या उसके विषय में चिन्ता करते हैं। द्वितीय, प्रत्येक धर्म में विश्वासों से सम्बन्धित कुछ क्रियायें या कर्म होते हैं अर्थात् धार्मिक विश्वास उस शक्ति के प्रति मनुष्य को निष्क्रिय या उदासीन नहीं रहने देता। उसे कर्म करना पड़ता है और इस कर्म की अभिव्यक्ति प्रार्थना, पूजा या आराधना के रूप में होती है। तृतीय धर्म एक सामाजिक घटना है। एक ही समाज में प्रत्येक व्यक्ति का, अलग-अलग धर्म है, ऐसा नहीं देखा गया। चतुर्थ, धर्म को मानना या न मानना स्वयं व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है और यह बात स्वयं उसके व्यक्तिगत अनुभवों द्वारा प्रभावित होती है।

धर्म की विशेषतायें
(General Characteristics of Religion)

(1) धर्म अलौकिक के विषय में विश्वास होता है।
(2) धर्म अन्तत: (Ultimate) समस्याओं के विषय में विचार प्रस्तुत करता है।
(3) धर्म सर्वातिशायी (Transcendental) मूल्यों से सम्बन्धित होता है।
(4) धर्म से सम्बन्धित वस्तुयें, प्राणी एवं स्थान पवित्र माने जाते हैं और उनके प्रति आदर एवं भय मिश्रित व्यवहार किया जाता है।
(5) धर्म से सम्बन्धित विश्वास उद्वेगपूर्ण होते हैं।
(6) धर्म विज्ञानोपरि (Non-scientific) होता है। विज्ञान ने इसको सिद्ध कर सकता है और न असिद्ध।
(7) धर्म अवलोकन से परे है।
( 8 ) प्रत्येक धर्म में किसी अलौकिक शक्ति से लाभ उठाने और उसके कोष से बचने के लिये प्रार्थना, पूजा या आराधना करने की विधियाँ या संस्कार भी हुआ करते हैं।
(9) धर्म मानव को वह शक्ति प्रदान करता है जिससे मानव अपने ज्ञान से परे के पर्यावरण से सामंजस्य स्थापित करता है।
(10) धर्म का आधार विश्वास है, तर्क से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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